Wednesday 14 February 2018

उत्तराखंड में आज भी मौजूद है वो जगह, जहां हुई थी शिव-पार्वती की शादी



भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। माना जाता है कि जिस स्थान पर देवी पार्वती ने तपस्या की थी वह है केदारनाथ के पास स्थित गौरी कुंड। गौरी कुंड की खूबी यह है कि यहां का पानी सर्दी में भी गर्म रहता है।

मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। फिर उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने पार्वती जी से विवाह किया। ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रिर्युगी नारायण गाँव में वे विवाह के बंधन में बंधे थे।

भगवान श‌िव को पत‌ि रूप में पाने के ल‌िए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। देवी पार्वती की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उनके विवाह का प्रस्ताव को स्वीकार कर दिया। मान्यातओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हुआ था।

रुद्रप्रयाग ज‌िले का एक गांव है त्र‌िर्युगी नारायण। कहते हैं इसी गांव में भगवान श‌िव का देवी पार्वती के साथ व‌िवाह हुआ था। इस गांव में भगवान व‌िष्‍णु और देवी लक्ष्मी का एक मंद‌िर है, ज‌िसे श‌िव पार्वती के व‌िवाह स्‍थल के रूप में जाना जाता है। इस मंद‌िर के परिसर में ऐसे कई चीजें आज भी मौजूद हैं, ज‌‌िनका संबंध श‌िव-पार्वती के व‌िवाह से माना जाता हैं।

तपस्या पूरी होने के बाद गुप्तकाशी में देवी पार्वती ने भगवान शिव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। जब भगवान शिव ने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तब देवी पार्वती के पिता हिमालय ने विवाह की तैयारियां शुरु कर दी और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में इनकी शादी हुई।

रुद्रप्रयाग जिले का एक गांव है त्रिर्युगी नारायण। कहते हैं इसी गांव में भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह हुआ था। इस गांव में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है जिसे शिव पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में कई चीजें हैं जिनके बारे में बताया जाता है कि यह शिव पार्वती के विवाह प्रतीक हैं।

यह है ब्रह्मकुंड। शिव पार्वती के विवाह में ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे। विवाह में शामिल होने पहले ब्रह्मा जी ने जिस कुंड में स्नान किया था वह ब्रह्मकुंड कहलता है। तीर्थयात्री इस कुंड में स्नान करके ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

जिस अग्नि को साक्षी मानकर उन्होंने सात फेरे लिए थे, वह अग्नि आज भी उस स्थान पर प्रज्जवलित है।

माना जाता है कि गांव में भगवान विष्‍णु और देवी लक्ष्मी का जो मंदिर है, यहीं पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। इस मंदिर के परिसर में कई ऐसी चीजें है, जिन्हें शिव-पार्वती के विवाह से जोड़कर देखा जाता है।

भगवान श‌िव ने इसी कुंड के चारों तरफ देवी पार्वती के संग फेरे ल‌िए थे। आज भी इस कुंड में अग्न‌ि को जीव‌ित रखा गया है। मंद‌िर में प्रसाद रूप में लकड़‌ियां भी चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु इस प‌व‌ित्र अग्न‌ि कुंड की राख अपने घर ले जाते हैं। कहते हैं यह राख वैवाह‌िक जीवन में आने वाली सभी परेशान‌ियों को दूर करती है।

भगवान श‌िव को व‌िवाह में एक गाय म‌िली थी। माना जाता है कि यह वह स्तंभ है, जिस पर उस गाय को बांधा गया था।

भगवान श‌िव के व‌िवाह में भाग लेने आए सभी देवी-देवताओं ने इसी कुंड में स्‍नान क‌िया था। इन सभी कुंडों में जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड को माना जाता है।

श‌‌िव-पार्वती के व‌िवाह में भगवान व‌िष्‍णु ने देवी पार्वती के भाई की भूम‌िका न‌िभाई थी। भगवान व‌िष्‍णु ने उन सभी रीत‌ियों को न‌िभाया जो एक भाई अपनी बहन के व‌िवाह में करता है। कहते हैं इसी कुंड में स्नान करके भगवान व‌िष्‍णु ने व‌िवाह संस्कार में भाग ल‌िया था।

Monday 12 February 2018

शिवरात्रि के दिन न करें ये 7 काम


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के सबसे समीप होता है। अतः इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से भक्तों को भगवान शिव से मनवांच्छित फल की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। स्कंदपुराण के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपवास किया जाता है, इस तिथि को सर्वोत्तम माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार शिवरात्रि से एक दिन पूर्व त्रयोदशी तिथि में भगवान शिव की पूजा की जाती है और व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद चतुर्दशी तिथि को अन्न-जल ग्रहण किए बिना रहा जाता है।


महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना शुभ माना जाता है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ऊं नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। भगवान शिव की विशेष रात्रि महाशिवरात्रि को जागरण किया जाता है और अगले दिन प्रातः काल में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण किया जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पित किया जाता है। भगवान शिव को बिल्व पत्र बेहद प्रिय होते हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को रुद्राक्ष, बिल्व पत्र, भांग, शिवलिंग औक काशी अतिप्रिय हैं।
हल्दी न करें इस्तेमालशिव को प्रसन्न करते वक्त अगर आपने हल्दी का इस्तेमाल किया है तो ये आपके लिए नुकसानदायक हो सकती है. शास्त्रों के मुताबिक मान्यता है कि शिवलिंग पुरुष तत्त्व से संबंधित है इस वजह से शिवलिंग पर हल्दी का प्रयोग नहीं करना चाहिए.   

इन खाद्य पदार्थों से रहें दूर
शिवरात्रि पर चावल, दाल और गेहूं से बने खाद्य पदार्थों से दूर रहन के लिए कहा जाता है. ये भी कहा जाता है कि जो लोग शिवजी को प्रसन्न करने के लिए वृत रखते हैं उन्हें फल, दूध, चाय, कॉफी इत्यादि का सेवन करना चाहिए. 

काले कपड़े न पहनें
शिवजी को अगर प्रसन्न करना है तो इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें. शिवजी का व्रत करते समय या उनकी पूजा अर्चना करते वक्त काले वस्त्रों को धारण न करें.

शिवलिंग पर चढ़ाएं प्रसाद का इस्तेमाल न करें
शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को ग्रहण नहीं करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से आपके यहां दुर्भाग्य का प्रवेश होता है और परिवार में गंभीर बीमारियां होने की संभावन हो जाती है.

शिवलिंग पर तुलसी न चढ़ाएं
शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि कभी भी शिवलिंग पर तुलती अर्पित नहीं करनी चाहिए. तुलसी को भगवान विष्णु के लिए अर्पित करने के लिए विशुद्ध माना गया है, लेकिन शिवलिंग पर इसे अर्पित करना वर्जित है.

शिव को भूलकर भी न चढ़ाएं चंपा और केतकी के फूल
भगवान शिव को चंपा और केतकी के फूल अर्पित नहीं करने चाहिए. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने इन फूलों को शापित किया था, जिस वजह से इन फूलों का भोलेनाथ की पूजा में इस्तेमाल वर्जित है.

बड़े बुजुर्गों का भूल से भी न करें अपमान

ऐसी मान्यता है कि अगर आप अपने किसी सगे-संबंधी, जीवनसाथी या फिर किसी बुजुर्ग का अपमान करते हैं तो आपसे शिवजी नाराज हो सकते हैं. ऐसे में अगर भूल वश आप से किसी भी बुजुर्ग का अपमान हो जाए तो समय रहते अपने कृत्य के लिए माफी मांग लें.
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हल्दी का टीका
शिवरात्री पर भगत मंदिर में हल्‍दी के जरिए भगवान शिव को टीका लगाते हैं. वैसे भी लगभग हर धार्मिक कार्य में हल्दी का प्रयेाग किया जाता है. लेकिन भगवान शिव को हल्दी अर्पित नहीं की जाती. इसका कारण है कि कि ऐसा हल्दी एक स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में प्रयोग की जाते वाली वस्‍त है और शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है.


सिंदूर या कुमकुम
महिलाएं सिंदूर या कुमकुम अपने पति की लंबी उम्र के लिए लगाती हैं. कहते हैं भगवान शिव विध्वंसक के रूप में जाने गए हैं इसलिए शिवलिंग पर सिंदूर या कुमकुम नहीं चढ़ाना चाहिए. इसकी बजाए आप चंदन का इसतेमाल कर सकते हैं.

तांबे का लोटा
शिवजी पर इस बार जब आप जल चढ़ाने जाएं तो केवल तांबे या पीतल के लोटे का ही इस्‍तेमाल करें, स्‍टील या लोहे के लोटे का नहीं.

शंख बजाना शुभ
हिंदू धर्म में शंख को बहुत पवित्र माना गया है हर पूजा-पाठ के काम में इसे बजाना और इसके जरिए लोगों को जल देना काफी शुभ माना जाता है, लेकिन कहते हैं कि शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए. ऐसा करना वर्जित माना गया है.


लाल रंग के फूल
आपने देखा होगा कि शिवरात्रि पर मंदिरों के बाहर खूब फूल बिकते हैं. पर क्‍या आप ध्‍यान दिया कि इन फूलों में लाल रंग के फूल नहीं होते. ज्‍यादातर गेंदा ही नजर आता है. ऐसा इसलिए कि शिवजी को लाल रंग के फूल नहीं चढ़ाते. कहते हैं कि सफेद रंग के फूल चढ़ाने से भगवान शिव को जल्दी प्रसन्न होते हैं.


महाशिवरात्रि 2018 पूजा शुभ मुहूर्त: महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 13 फरवरी की आधी रात से शुरु होकर 14 फरवरी तक रहेगा। इस दिन भगवान शिव का पूजन सुबह 7 बजकर 30 मिनट से शुरु होकर दोपहर 3 बजकर 20 मिनट तक किया जाएगा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार चतुर्थी के दिन भोलेनाथ की शादी मां पार्वती से हुई थी, इस दिन भगवान शिव के भक्तों द्वारा उनकी बारात निकाली जाती हैं। महाशिवरात्रि के उपवास के दौरान भक्तों को गेहूं दाल और चावल से दूर रहना चाहिए। इस दिन कई भक्त बिना आहार ग्रहण किए व्रत करते हैं लेकिन जो लोग निराहार नहीं कर सकते हैं वो फल, चाय, कॉफी का सेवन कर सकते हैं। शाम को पारण करते समय पहले भगवान शिव की पूजा की जाती है। उसके बाद कुट्टू के आटा या साबू दाने के आटे का इस्तेमाल किया जाता है। व्रत का खाना पकाने के लिए सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है।

शिवरात्रि के पावन अवसर पर कीजिए सभी उच्च कोटि के शिव मंदिर के दर्शन